कलाबती
कुआंरी तू
कोमल स्पर्श से तेरी
कौमार्य मेरा हुआ
क्रीडानक् ...
कृष्णाष्टमी के
कुलीन हुआ
कदाचारी ...
कल्पना की
कामनाओं को तेरी
कतिपय
काजल दिया तो सही
किशोरी मेरी
कम्पित ये
कुरुक्षेत्र में
कृष्ण हुआ
कलंकित
कुलांगार ...
कृष्ण हुआ
कलंकित
कुलांगार ...
(यह कविता के रचयिता श्रीमान फ़कीर मोहन नाहक है )
projected very creatively.
ReplyDeleteSasmita Ji, Thanks a lot for your comments.
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